एकात्मता से भी आगे ऐक्य : ना में बड़ा ना तुम छोटी !
एक फेसबुक ग्रुप में किसी ने पोस्ट रखी उसका विषय था “स्त्री को पुरुषों के बराबर करने के उपाय बताइए” , बहोत सी कमेंट उस पोस्ट पर आई कुछ चीला चालू थी, कुछ थोड़ा हटके थी, कुछ आपत्ती हो सकती है ऐसी भी थी | ज्यादातर दो हिस्से दिखे | एक वर्ग ऐसा था जो साबित करने पर तुला था की स्त्री तो पुरुष से महान ही होती है फिर उसको समान या बरोबरी के स्तर पर क्यो लाना ? एक सुर यह है की पुरुष के कार्य अलग है और स्त्री के कार्य अलग है, पुरुष की शारीरिक क्षमता, स्त्री की शारीरिक क्षमता अलग अलग है , और दोनो के शरीर की रचना भी अलग अलग है तो फिर दोनो समान या बराबर कैसे हो सकते है ?
जब भी स्त्री पुरुष समानता की बात आती है तो एक दंभ सा नजर आने लगता है लगभग हर एक राय में | स्त्री पुरुष से महान ही है ऐसा हम समझते है तो क्या हम हर स्त्री को अपने से महान समज कर उसकी महिमा करने लगते है ? अगर स्त्री पुरुष से महान ही है ऐसा हमे विश्वास है तो क्या घर मे माँ, बहन, पत्नी, पुत्री, भाभी, भतीजी, नानी, चाची, साली यह सारे संबंध जिन जिन स्त्रियों के साथ हमारे आते है उसको देखते ही हम खड़े हो कर नमन करते है क्या ? नमन नही करते तो उनका सन्मान एक ही स्तर पर करते है क्या ? ऐसा तो नही होता ! हम माँ के पैर छूते है पर हमारी पुत्री हमारे पैर छूती है | भाभी हमसे बड़ी हुई तो हम उसे माँ समान मानते है और छोटे भाई की पत्नी को हम बहन समान मानते है | अगर साली बड़ी हो तो बड़ी बहन छोटी हो तो छोटी बहन अगर दस पन्द्रह साल छोटी हो तो बेटी मानते है और उसका सन्मान उसी तरफ करते है जिस तरह हम बड़ी बहन, छोटी बहन और बेटी का करते है | हम सीता, पार्वती, दुर्गा, सावित्री, मंदोदरी, द्रौपदी, राणी लक्ष्मीबाई ऐसी अनेक स्त्रियों को मातृस्वरूपा अथवा शक्ति स्वरूपा मानकर उसका पूजन, यजन और स्मरण करके सन्मानित करते है, पर दूसरी तरफ हम सूर्पनखा, पूतना,कैकेयी या मंथरा को नफरत करते है | सीता भी स्त्री है कैकयी भी स्त्री है ,पर हमारे लिए सीता महान है पर कैकयी स्त्री होने के बावजूद महान नही है | अगर स्त्री सिर्फ स्त्री होने के कारण ही महान होती तो हम अपनी पुत्री के चरण धो कर चरणामृत लेते और कैकयी, मंथरा और पूतना आदि स्त्रीओ की भी पूजा करते | पर हम ऐसा नही करते है |
मूलतः मनुष्य को स्त्री और पुरुष के पलड़े में तोल कर देखना ही एक गलत धारणा को जन्म देता है | क्योंकि स्त्री स्त्री है इसलिए महान या निम्न है या पुरुष पुरुष है इस लिए महान या निम्न है यह सोच ही गलत दिशा की सोच है | स्त्री और पुरुष अलग है और एक दूसरे की स्पर्धा या आधिपत्य में होते है यह सोच पश्चिमि सोच है | यह मापदंड भी पाश्चयात ही है | महाराणा प्रताप, शिवाजी या सम्राट अशोक सारे जब बालक थे तब माता की कोख में ही सुरक्षा पाते थे | और देश की प्रधानमंत्री रही इन्द्रीरा गांधी अपने पिता जवाहरलाल नहेरु की उंगली पकड़ कर ही चलना सीखी थी | मनुष्य हो या फिर कुदरत हम उसके गुण के आधार पर उसे अच्छा या महान समझते है | नारियल के पेड़ से नीम के पेड ऊंचाई में कम होने के बावजूद हमे नीम के पेड़ ही अच्छे लगते है क्योंकि नीम का पेड़ छाया देता है । बरगद और बबूल में हमे बरगद ही पसंद आएगा । वैसे ही जो व्यक्ति चाहे वो स्त्री हो या पुरुष उसके अच्छे कर्म और उसके अच्छे गुण के आधार पर ही उसे नापा जाता है I गुण, कर्म और कर्तव्य व्यक्ति की महानता का मापदंड है ।
हमारे यहां स्त्री और पुरुष को एक दूसरे के खिलाफ नही एक दूसरे के साथ देखने की परम्परा है | हमारे यहां शिव है तो शक्ति भी है, पुरुष है तो प्रकृति भी है | क्या हम शिव की शक्ति से अलग कल्पना कर सकते है ? उसी तरह प्रकृति की कल्पना पुरुष के बगैर हो सकती है ? हमारा भारतीय विचार स्त्री और पुरुष में बंटा हुआ नही है, हम मनुष्य या उससे भी आगे प्राणी मात्र या और भी आगे जाए तो जीव मात्र की बात करते है, हम लोग । जीव मात्र की बात से भी आगे हम आत्मा की बात करते है, परमात्मा की बात करते है ! और जब हम आत्मा और परमात्मा की बात करते है तब ध्यान में आता है की वो दोनो ना परस्पर विरोधी है न परस्पर पूरक है वो तो एक ही है | यही बात हमे नजर आती है अर्ध नारीश्वर मे ! एकात्मता से आगे ऐक्य |