काव्य
विजय ठाकर
अखंड हूँ, अगाध हूँ , प्रचंड शक्तिपात हूँ । धर्म रक्षा धार हूँ, अधर्मीओ पे वार हूँ । काल को संहारता राम का मे बाण हूँ, सृष्टि को सवांरता कृष्ण का कलाप हूँ । ब्रह्मा के ज्ञान की धीरी धीरी सी चाल हूँ, लय-प्रलय संभालता मे शिवा का भाल हूँ । मे राष्ट्र हूँ, मे
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