में राष्ट्र हूँ
अखंड हूँ, अगाध हूँ , प्रचंड शक्तिपात हूँ ।
धर्म रक्षा धार हूँ, अधर्मीओ पे वार हूँ ।
काल को संहारता राम का मे बाण हूँ,
सृष्टि को सवांरता कृष्ण का कलाप हूँ ।
ब्रह्मा के ज्ञान की धीरी धीरी सी चाल हूँ,
लय-प्रलय संभालता मे शिवा का भाल हूँ ।
मे राष्ट्र हूँ, मे राष्ट्र हूँ ।
सुषुप्त अग्निकुंड मे पनप रही वो आग हूँ,
और धरा पर मेघ सी बरस रही बौछार हूँ ।
मरुभूमि मे पल रहा प्रतापी चक्रवात हूँ,
अपार जलधि का मे अघोर जलप्रपात हूँ ।
अरण्यों का एकांत हूँ, महा नदों का नाद हूँ ,
गिरि कंदरों का मे अनिमेष अंधकार हूँ ।
मे राष्ट्र हूँ, मे राष्ट्र हूँ ।
एक नहीं अनेक हूँ मे संयमित विवेक हूँ,
सत्व को प्रसारती अमोघ सी मे रेख हूँ ।
प्रकृतिको पुजता महापौरुष का हाथ हूँ,
बंधुता को सिंचता साधना का सार हूँ ।
समानता का ब्रह्मनाद, संस्कृति समन्वयक,
अनंत नभ मे गूँजता विश्व का सिंगार हूँ ।
मे राष्ट्र हूँ, मे राष्ट्र हूँ ।
डो जयंती भाडेसीया
सरस
K. Vaghani
मे राष्ट्र हूँ
Jagdish Mahant
ॐ राष्ट्रय स्वाहा।
बहोत ही सुंदर एवम उत्तम।
अगाध अर्थ है।
Seema Dasgupta
Superb… Expressed v. Beautifully. It’s v. Motivational poem. Keep it up.
Seema Dasgupta
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Seema Dasgupta
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