अब बता ए राष्ट्रपुरुष…..
शंखनादों ने है भेदा गगन,
रण दुदुंभी ने भी है छेड़ा तरंग ।
राष्ट्र नायकों का भी मचला है मन,
चीख उठा भी तो है सारा चमन,
यौवन बिछाए प्राण जब होकर मगन ।
अब बता ए राष्ट्रपुरूष,
तुम हार कैसे जाओगे ?
तार मिले है अब ह्रदय से,
डग भी मिले है कदम से ।
एक स्वर मल्हार गाता,
द्रष्टि समता पर बिछाता,
दिग्विजयी घोष उठा अब समर से ।
अब बता ए राष्ट्र पुरूष,
तुम हार कैसे जाओगे ?
काल का कालांत होगा,
रातों से निकलेगी भौर ।
रस उगलती चांदनी से,
ज्वाला उठेगी जब चारों और,
शत्रु पर जब होगा प्रहार प्रखर ।
अब बता ए राष्ट्र पुरूष
तुम हार कैसे जाओगे ?