विनिता
बेंक में “सिंगल विंडो” सिस्टम लागु हुई उसके बाद काम समान रूप से ज्यादा रहेने लगा है I पहेले कुछ काउंटर पर काम कम या ज्यादा रहेता था, पर अब सभी काम सभी काउंटर पर हो सकते है और स्टाफ भी कम हो गया है I अब तो बेंक में दिन शुरू होता है और ख़तम होता है तब तक काम ही काम रहेता है कभी फुरसत ही नहीं मिलती | हा महीने के अंतिम दिनों में काम कम रहेता है , तब ग्राहको से दो बाते कर सकते है |
विनिता ऐसे ही समय में बेंक आया करती थी | मैं ने एक बार उसे पूछा की सारे लोग १ से १० तारीख तक अपना ट्रांसेक्शन ख़तम करने के लिए भागमभाग करते है और आप क्यों २५ से ३० वाले दिन पसंद करती हो ? उसके जवाब में उसने बोला था की ना उसे भीड़ पसंद है ना जल्दबाजी | धीरे धीरे परिचय हुआ तब उसके स्वभाव का पता चला और उसके लिए एक मन सा कुछ बन गया, की वह अपने जीवन के हर छोटे बड़े कार्य शांति से करना पसंद करती थी | शायद इसी लिए ३५ साल की उम्र होने के बावजूद भी अब तक शादी नहीं की थी | लेकिन शादी के विषय में उसे कुछ पूछ ने की हिमत नहीं बन पा रही थी मेरी |
आज अचानक विनिता क्यों याद आई ?
हां, आज २५ तारीख है इसी लिए शायद ! बस आज कल में बेंक आ सकती है विनिता |
विनिता जिस स्कुल में शिक्षिका थी उसी स्कुल की सेलरी हमारी ब्रांच से होती थी | सेलरी तो हर महीने की ७ तारीख को होती जाती थी और चपरासी से लेकर प्रिंसिपल तक अपनी सेलरी १० तारीख से पहेले अपने एकाउंट से निकाल लेते थे, पर विनिता मेडम हमेशा महीने के अंतिम दिनों में ही आती थी | संयोग से या पता नहीं क्यों विनिता मेरे काउंटर से ही अपना ट्रांसेक्शन करती थी | उन दिनों में कस्टमर की संख्या कम होने के कारण दो बाते विनिता से हो जाती थी, बस ऐसे ही उससे रिश्ता बन गया | यह रिश्ता कभी कभी चाय के कप तक पहोंचता था | कई बार चाय के लिए हा ना हा ना करती विनिता कभी सामने से “ आज चाय पिलाओगे की नहीं ?” ऐसा कह कर मुज पर अपनी चाय का अधिकार कायम रखती थी | वैसे हमारी बातचीत का दायरा बेंक और स्कुल के बिच ही रहेता था | में कस्टमर के साथ ज्यादा बात भी नहीं कर पाता था शायद मेरे कम बोलने की आदत की वजह से ही | शायद इसी लिए विनिता ३५ की उम्र तक क्यों कंवारी है वह पूछ नहीं पाया था उसे | अब लगता था की कस्टमर और बेंकर के बिच की मर्यादा अब तोडनी पड़ेगी | अब विनिता को उसकी शादी के बारे में पूछना पड़ेगा |
“ किस के ख्यालों में खोए है बेंकर साहब ….?”
एक मीठी आवाज ने मुझे अपने खयालों से बहार निकाला |
“अरे तुम ! ”
आश्चर्य के बिच सामने ही विनिता खड़ी थी |
मेरी नजर विनिता के चहरे पर पड़ी | आज विनिता कुछ अलग ही लग रही थी | हररोज से ज्यादा आज उसका चहेरा चमक रहा था | पता नहीं चल रहा था उसका चहेरा क्यों चमक रहा था | उसने वही एरिंग्स पहेने थे जो हमेशा पहेना करती थी , नाक पर नथ भी वही थी जो पहेले भी पहेना करती थी, उसके नाजुक गले में वही पतली सोने की चेइन थी जिसे वह हमेशा अपनी ऊँगली से सहलाया करती थी | माथे पर वही गुलाबी बिंदी | और उसकी हेयर स्टाइल भी ….. ! अरे यह क्या ? हमेशा अपने बाल को खुला रखने वाली विनिता ने बाल को गूँथा था और , .. उसके बालो में सिंदूर लगा था ,,,, मतलब विनिता ने ….?
“क्या देख रहे हो ?
एक बार और उसकी मिठी आवाज़ ने मुझे रियल दुनिया में ला दिया |
“कुछ नहीं … ! बस यह सोचता था की आपकी शादी में आ सके इतनी भी वेल्यु हमारी नहीं थी क्या ? “
विनिता की नाजुक और सुंदर उँगलियाँ माथे पर लगे सिंदूर पर पहोंची |
“ ओह… सोरी सब अचानक तय हो गया, और शादी भी कोर्ट में ही कर ली..“ बात पूरी करने से पहेले ही मेरे पास पडे स्टुल पर बैठते हुए बोली “ अगर आप आज चाय पिलाते है तो में आपको मेरी शादी की पार्टी में जरुर बुलाउंगी | “
उसका चाय के बदले पार्टी का सौदा मैंने मंजूर कर लिया | शादी में विनिता ने क्यों देरी की थी यह पूछने के लिए अब मुझे कोई हिम्मत की जरुरत नहीं रही | आखिर मैंने पूछ ही लिया |
आज विनिता शायद अलग मुड मे ही थी , उसने कारण भी बताया |
“ जिम्मेदारी ! शादी देर से करने का कारण जिम्मेदारी ही तो था | मेरा एक भाई है , हर्ष नाम है उसका | मुझसे पांच साल छोटा, जब बो सात साल का था तभी मेरी मम्मी की मृत्यु हो गई थी | मम्मी को “ब्रेस्ट केन्सर” था | मम्मी के मृत्यु के बाद पापा भी बहोत “अपसेट” रहेते थे | यहाँ तक की घर में भी उनका ध्यान नहीं रहेता था | जैसे तैसे मैंने घर का ध्यान रखते हुए पढाई पूरी की | पी.टी.सी के अंतिम वर्ष में थी तभी मम्मी के वियोग में पापा भी चल बसे | वैसे पापा थे तब भी घर की और हर्ष की जिम्मेंदारी मुज पर ही थी | पापा हर महीने सेलरी मुझे दे देते थे इतना अच्छा था | अब पापा नहीं रहे तो सेलरी भी नहीं मिलने वाली थी, बहोत बड़ा संकट सामने मुंह फाड़ कर खड़ा था | हर्ष सिर्फ १४ साल का ही था, पढने में भी बहोत होनहार था इस लिए उसे पढाना भी था | भगवान की कृपा से मुझे इसी स्कुल में तुरंत शिक्षिका की नोकरी मिल गई | तब से मैंने मेरे लिए नहीं हर्ष के लिए जिना शुरू किया और हर्ष ने भी मुझे कभी निराश नहीं किया | वह पढ़ता गया ,अच्छे नंबर लेकर आगे बढ़ता गया | बस फिर क्या था पहेले एम्. बी. बी. एस. और अभी छे महीने पहेले ही एम्. डी. कर हर्ष से डॉ. हर्ष बन गया | वैसे उसने एम्. बी. बी. एस. कर लिया तभी उसने मुझे शादी कर लेने के लिए कहा था,पर में जानती थी की वह एम्. डी. करना चाहता है , इस लिए मैंने थोडा और ठहरना ठीक समजा | “
विनिता ने बात ख़तम की तब उसकी आँखो के कोने नम हो गए थे | पर चहेरे पर चमक थी, एक जिम्मेदारी पूर्ण करने की |
बातो बातो में पता ही नहीं चला कब चपरासी चाय के दो कप टेबल पर रख गया | मैंने एक कप विनिता को दिया I
Hitakshi
Well written…mixed feelings
krushnakant parmar
Ama ek vat to sachi. Tame school ma rahine tamari responsibility fulfill kari sako. Bank ma rahine?? Still in doubt☺
seema dasgupta
it’s v.touching story
Pranav Bhatt
Good Story …
Cari on ,sir
…