द्रस्टिकोण

द्रस्टिकोण विजय ठाकर

मिडिया के लिए कुछ रोमेंटिक विषय रहेते है, जिसमें से एक विषय है मुसलमानों और राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ’ | अभी थोड़ी देर पहेले ही एक न्यूज़ चेनल के कार्यक्रम में एक बड़ा विश्लेषण आया | जिसमे बताया गया की संघ के विजयादशमी के संदर्भ में देश भर में चल रहे कार्यक्रमों में आजतक किसी मुसलमान
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काव्य विजय ठाकर

अखंड हूँ, अगाध हूँ , प्रचंड शक्तिपात हूँ । धर्म रक्षा धार हूँ, अधर्मीओ पे वार हूँ । काल को संहारता राम का मे बाण हूँ, सृष्टि को सवांरता कृष्ण का कलाप हूँ । ब्रह्मा के ज्ञान की धीरी धीरी सी चाल हूँ, लय-प्रलय संभालता मे शिवा का भाल हूँ । मे राष्ट्र हूँ, मे
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द्रस्टिकोण विजय ठाकर

तारीफ फ़तेह जो केनेडियन लेखक और लिबरल एक्टिविस्ट है , जब कर्णावती(अमदावाद) आये थे तब उन्हों ने एक बात कही थी जाकिर नायक के बारे में ! तारिक ने कहा था एक बदसूरत व्यक्ति इस्लाम के बारे में खूब सूरत बाते बताता है | इस्लाम की खुबसूरत बाते और जाकिर की बदसूरती के संदर्भ को
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द्रस्टिकोण विजय ठाकर

कुछ घटनाएँ तीव्र गति से बनती जा रही है | और हर बार ऐसी घटनाएँ एक बात स्पष्ट कर जाती है की एक टोली है इस देश में जो नागरिको में ध्रुवीकरण कर रही है | जब इस घटनाओ का बारिकी से अध्ययन करते है तो लगता है की यह मामला ध्रुवीकरण का नहीं है
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द्रस्टिकोण विजय ठाकर

इन्डियन एक्सप्रेस में जे.एन.यु. की प्रोफ़ेसर मृदुला मुखर्जी का आलेख “ A History of their own” पढ़ा I वैसे उनकी बातों से कोई आश्चर्य नहीं हुआ I यह कोम्युनिस्ट लोग आर.एस.एस. के बारे में, देश के इतिहास के बारे में ऐसी ही सोच रखते है , कुछ नया नहीं है इसमें I हाँ, इस आलेख
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संदर्भ विजय ठाकर

केरल का कन्नूर एक ऐसा जिला है , जो संघ स्वयंसेवकों पर हुए अत्याचारों की अनेकों अनकही कहानियाँ अपने अन्दर छुपाये हुए हैं ! यह दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि पुराने मीडिया की नजरे इनायत इधर नहीं है ! क्योंकि उसकी व्यस्तता और रूचि संघ परिवार के सकारात्मक सेवा कार्यों को विध्वंसक बताकर उसे अकारण बदनाम
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लघु कथा विजय ठाकर

बेंक में “सिंगल विंडो” सिस्टम लागु हुई उसके बाद काम समान रूप से ज्यादा रहेने लगा है I पहेले कुछ काउंटर पर काम कम या ज्यादा रहेता था, पर अब सभी काम सभी काउंटर पर हो सकते है और स्टाफ भी कम हो गया है I अब तो बेंक में दिन शुरू होता है और
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तथ्य,द्रस्टिकोण,संदर्भ विजय ठाकर

आजकल एक चर्चा चल पड़ी है, कोई कहेता है की में भारत माता की जय बोलूँगा ,तो कोई कहेता है की मेरी गरदन पर छुरी रख दो फिर भी में भारत माता की जय नहीं बोलूँगा, किसी ने बोला भारत माता की जय बोलने में कोई दिक्कत नहीं पर हमसे देशभक्ति का प्रमाण पत्र क्यूँ
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काव्य विजय ठाकर

हाँ मै हिन्दू हुँ , प्रलयंकर हुँ , अभयंकर भी हुँ । हाँ मै हिन्दू हुँ । धूप छाँव की विषमता मे रहेता भी हुँ , और काल के धाँवों को मै सहेता भी हुँ । विष को अमृत समज कर पीता भी हुँ , और होली में जलकर मै जीता भी हुँ । हाँ
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काव्य विजय ठाकर

हाँ फिर से ललकार करे हम, हाँ फिर से ललकार करे । चिरकर सिना दुःशासनों का, फिर से हम रक्तपान करे । हाँ फिर से ललकार करे ….. दुर्योधनों की जंघा को चीरे , फिर से रण चित्कार करे । कंंसो जरासंघो को काटे, और तेरा जयजयकार करे । हाँ फिर से ललकार करे ……
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